जालंधर (ब्यूरो):- 40 सिंह, 30 घोड़े, 20 हाथी, 15 टाइगर , 6 ऊंट, 3 भालू, 3 जिराफ और 2 समुद्री शेर…
ये कोई चिड़ियाघर के जानवरों की लिस्ट नहीं, बल्कि एक वक्त पर जेमिनी सर्कस का लाव-लश्कर था। वही जेमिनी सर्कस, जिसे आपने अपने शहर या मेलों में कभी न कभी देखा होगा। धीरे-धीरे ये सर्कस दम तोड़ रहे हैं, इसी बीच इस सर्कस के पितामह शंकरन ने भी दम तोड़ दिया है। आज जानेंगे जेमिनी शंकरन और उनके सर्कस की पूरी कहानी। क्या थी वो शर्त जिससे भारत में सर्कस की शुरुआत हुई और इसके इतिहास से जुड़े तमाम रोचक किस्से…
बात आजादी से भी पहले की है। केरल के कन्नूर जिले में ही 13 जून 1924 को शंकरन का जन्म हुआ। चौथी क्लास में किट्टूनी सर्कस का एक शो देखकर वे इतने प्रभावित हुए कि उसी समय तय कर लिया कि वे यही करेंगे। कौन जानता था कि चौथी क्लास में पढ़ने वाला ये बच्चा आगे जाकर भारत में सर्कस के इतिहास का सबसे बड़ा नाम बनेगा। हालांकि, तब वे अपने पिता से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
7वीं क्लास आते-आते उन्होंने अपने पिता से बात की और कहा कि वे एक्रोबेटिक्स सीखना चाहते हैं। पिता ने शंकरन की बात सुनी और उन्हें इसकी ट्रेनिंग दिलाने का फैसला किया। 1937 में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और अपने आप को पूरी तरह मार्शल आर्ट्स और एक्रोबेटिक्स के लिए समर्पित कर दिया। इसके बाद 3 साल तक वे थलास्सेरी कीलेरी कुनिक्कन्नन से सर्कस सीखते रहे। कुनिक्कन्नन थलास्सेरी में सर्कस और मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग दिया करते थे।
दुकान खोली, आर्मी में गए, लेकिन किस्मत ने सर्कस तक पहुंचाया
ट्रेनिंग लेने के बाद भी शंकरन को सर्कस पर पूरा विश्वास नहीं था तो शुरुआत में उन्होंने व्यापार में किस्मत आजमाई। यहां भारी घाटा हुआ तो 2 साल बाद 1942 में वे आर्मी में भर्ती हो गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब 1946 में वे वापस थलास्सेरी आए तो उनके सर्कस टीचर की मौत हो चुकी थी।
अब जेमिनी शंकरन ने कुनिक्कन्नन के शिष्य एम. के. रमन से सर्कस सीखना शुरू किया। 2 साल बाद 1948 में वे कोलकाता के बॉस लॉयन सर्कस में काम करने लगे। यहां उनकी सैलरी केवल 300 रुपए थी। यहां से निकलकर उन्होंने नेशनल सर्कस में और इसके बाद पांच साल तक रेमन सर्कस में भी काम किया। वे सर्कस में केवल कलाकार के तौर पर काम नहीं करना चाहते थे, उन्होंने तय किया कि वे खुद की सर्कस कंपनी शुरू करेंगे।
अपनी राशि के नाम पर रखा जेमिनी सर्कस का नाम
साल 1951 में उनका ये सपना पूरा हुआ। उन्होंने महाराष्ट्र में 6,000 रुपए में विजया सर्कस कंपनी खरीदी। इसी कंपनी को उन्होंने जेमिनी सर्कस नाम दिया। उनके जन्म की राशि जेमिनी थी, इसलिए उन्होंने अपनी सर्कस कंपनी को ये नाम दिया। इसी कंपनी के नाम से उन्हें भी जेमिनी शंकरन के नाम से जाना जाने लगा, जबकि उनका पूरा नाम मुरकोथ वेंगाकांडी शंकरन था।
इंदिरा गांधी ने एक टेलीग्राम पर कराई ट्रेन की व्यवस्था
ऐसा कहा जाता है कि एक बार बिहार में शो के बाद जेमिनी सर्कस को अपने जानवरों को वापस केरल ले जाना था, लेकिन उन्हें कोई साधन नहीं मिल रहा था। जेमिनी शंकरन ने इसके लिए इंदिरा गांधी को टेलीग्राम भेजा। गांधी ने तुरंत रेलवे को इसकी जानकारी दी और जेमिनी सर्कस के लिए ट्रेन की व्यवस्था हो गई।
सूडान में आज के अन्य अहम अपडेट्स…
सूडान में WHO की प्रतिनिधि का कहना है कि सेना या पैरामिलिट्री ने बीमारियों के सैंपल जमा करने वाले एक लैब पर कब्जा कर लिया है। इससे जैविक खतरे की आशंका बढ़ गई है।
मिडिल ईस्टर्न देश साइप्रस ने सूडान में फंसे विदेशी नागरिकों के रेस्क्यू के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन में मदद करने की बात कही है।
UN रिफ्यूजी एजेंसी- UNHCR सूडान में रह रहे करीब 2 लाख 70 हजार शरणार्थियों के पलायन की तैयारी कर रहा है। सूडान में सीरिया, यमन जैसे देशों के 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी रहते हैं। वहीं, 2021 के बाद से 3 लाख 70 हजार सूडानी नागरिकों ने पड़ोसी देश चाड में शरण ली है।
जर्मनी का रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा हो गया है। जर्मन एयर फोर्स ने 600 नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया है। मंगलवार देर रात मिलिट्री का आखिरी एयरक्राफ्ट 120 नागरिकों को लेकर जॉर्डन पहुंचा। यहां से सभी को जल्द जर्मनी एयरलिफ्ट किया जाएगा।
जेमिनी सर्कस कंपनी के पास 20 हाथी, 40 शेर, 15 बाघ, 30 घोड़े, 6 ऊंट, 3 भालू, 3 जेबरा और 2 सी लायंस थे। इनमें से कई जानवरों को विदेशों से खरीदा गया था। जेमिनी शंकरन ने भारत के सर्कस को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। इसके लिए जेमिनी शंकरन को भारत सरकार ने लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा। शंकरन ने अपने सर्कस के जीवन पर एक किताब भी लिखी, जिसका नाम मलक्कम मरियुन्ना जीविथम है।
1999 में जेमिनी शंकरन ने सर्कस कंपनी के मालिक के तौर पर इस्तीफा दे दिया। पांच साल बाद उनके बेटों अजय और अशोक शंकर ने जेमिनी सर्कस की कमान संभाली।
ये तो थी जेमिनी सर्कस की कहानी। अब बात भारत में सर्कस के शुरुआत की…
हमारे देश में सर्कस जैसे तमाशे हमेशा से होते रहे हैं। सर्कस आने के बाद भी सड़कों पर होने वाले तमाशे जारी रहे। बात 1879 की है, ग्यूसेप चियारिनी का रॉयल इटालियन सर्कस भारत के दौरे पर आया था। अपने हर शो की शुरुआत में चियारिनी दर्शकों को ये जरूर बोलते थे कि भारत में कोई सर्कस नहीं है और यहां के लोगों को इसके लिए कई सालों तक इंतजार करना पड़ सकता है। ऐसे ही एक शो में उन्होंने शर्त रखी कि अगर कोई 6 महीने में उनकी तरकीबों को दिखा दे तो वे उसे 1000 ब्रिटिश इंडियन रुपए और एक घोड़ा ईनाम में देंगे।
शर्त पूरी न करने पर 10,000 रुपए और 10 घोड़ों का ईनाम