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श्री दरबार साहिब में शुरू हई बेरियों की सेवा पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से गोल्डन टेंपल पहुंची टीम सालों पुराने तीनों पेड़ों की होगी काट-छांट

मान्यवर पंजाब के अमृतसर में श्री दरबार साहिब में लगीं बेरियों की सेवा के लिए पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) की टीम पहुंच गई हैं। हर साल अप्रैल और मई में इन बेरियों की संभाल के लिए टीम आती है। श्री दरबार साहिब के प्रांगण में तीन प्राचीन ‘बेर’ पेड़ हैं दुखभंजनी बेरी, बेर बाबा बुड्ढा साहिब और लाची बेर। इनमें से पहले दो लगभग 400 साल पुराने हैं। इस वक्त बेर बाबा बुड्ढा साहिब ढेर सारे फलों से लदी हुई है।

सोमवार को पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सीनियर फीड विज्ञानी डॉक्टर संदीप सिंह और प्रिंसिपल फल विज्ञानी डॉक्टर जसविंदर सिंह बराड़ ने बताया की इन बेरियों पर फल आना दशकों की मेहनत है। हर साल पीएयू की टीम आती है और इनकी संभाल करती है। अप्रैल और मई माह खास होते हैं। क्योंकि इस दौरान पुराने पत्ते झड़ते हैं और नए पत्ते आते हैं। कई जंगली पौधे भी अपने आप उग जाते हैं जिन्हें हटाना जरूरी होता है। इसलिए आज उनकी टीम इन तीनों पेड़ों के साथ-साथ जो अन्य फलों वाले पौधे लगे हैं उनकी सेवा करेगी ताकि इन पर फल आते रहें।

बेरियों पर लगे फलों को नहीं तोड़ा जाता इन बेरियों पर लगे फलों को तोड़ा नही जातां बल्कि जो फल गिरे होते हैं उन्हें लोग आशीर्वाद समझकर उठाकर ले जाते हैं। इन पेड़ों की देखभाल पिछले कुछ वर्षों से पीएयू कर रही है। नियमित रूप से इन पेड़ों की छंटाई और छिड़काव किया जाता है। बाबा बुड्ढा साहिब बेरी सूख चुकी थी और इसकी हालत बहुत खराब थी। इन्हें यूनिवर्सिटी को सौंपा गया। इसके बाद नया जीवन देने के लिए इसे उचित खाद प्रदान की गई। सफाई के दौरान मिले थे प्राचीन सिक्के, पॉलीथिन बैग

इससे पहले एसजीपीसी ने इन ‘बेर’ पेड़ों के चारों ओर संगमरमर के फर्श को हटा दिया था ताकि उन्हें धूप, हवा और पानी की उचित आपूर्ति मिल सके। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के विशेषज्ञों ने बेर बाबा बुड्ढा साहिब के निचले हिस्से को साफ करने के अलावा काट-छांट भी की थी। वृद्धावस्था के कारण और साथ ही भक्तों द्वारा “विश्वास की बात” के रूप में पेड़ के नीचे विभिन्न प्रकार की चीजें फेंकने के कारण पेड़ का निचला हिस्सा खोखला हो गया था। इसकी सफाई के दौरान पीएयू की टीम ने इसके नीचे से प्राचीन सिक्के, पॉलीथिन बैग और यहां तक ​​कि एक जोड़ी चश्मा भी बरामद किया था। इसके बाद, पेड़ के आसपास के क्षेत्र को खोदा गया और पेड़ के खोखले हिस्से को भरने के अलावा ताजी मिट्टी डाली गई।

चारों ओर लगाई लोहे की ग्रिल वहीं दुखभंजनी बेरी का एक हिस्सा, प्राचीन ‘बेर’ वृक्ष जिसका बहुत धार्मिक महत्व है, 2014 में लगभग पूरी तरह से सूख गया था। इसके बाद एसजीपीसी ने विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद ‘बेर’ के पेड़ के चारों ओर बहुत सी खुली जगह बनाई थी। इसके अलावा, इसके चारों ओर लोहे की ग्रिल भी लगाई गई है, ताकि इसे सुरक्षित रखा जा सके।