जालंधर (ब्यूरो):- पंजाब में खिलाड़ियों से खेल का एक बड़ा मामला सामने आया है। पंजाब का पूर्व स्टेट लेवल हॉकी खिलाड़ी परमजीत कुमार मंडी में पल्लेदारी करने को मजबूर है। परमजीत पंजाब के फरीदकोट का रहने वाला है। उसके हाथ में कभी हॉकी हुआ करती थी लेकिन सरकार ने नौकरी नहीं दी। मजबूरन परिवार के पालन-पोषण के लिए उसके हाथों-कंधों पर चावल की बोरियों का वजन पड़ गया।
आलम यह है कि इस खिलाड़ी को 1 बोरी लोड-अनलोड करने के सिर्फ 1.25 रुपए मिलते है। परिवार का पालन पोषण करने के लिए परमजीत रोजाना की 450 बोरियां लोड-अनलोड करता है। भारतीय टीम की ड्रेस में इसे पल्लेदारी करते देख लोग भी दंग रह जाते है।
परमजीत कुमार फरीदकोट में पले-बढ़े और सरकारी बिजेंद्रा कॉलेज में कोच बलतेज इंदपाल सिंह बब्बू द्वारा हॉकी में दीक्षा प्राप्त की और बाद में बलजिंदर सिंह से कोचिंग ली। 2004 में परमजीत को NIS, पटियाला में भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के प्रशिक्षण केंद्र के लिए चुना गया था, और फिर 2007 में NIS, पटियाला में हॉकी के लिए उत्कृष्टता केंद्र के लिए चुना गया।
परमजीत 2009 से पहले केंद्र के साथ रहे। पंजाब पुलिस और पंजाब स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड के लिए तीन साल तक कांट्रेक्ट पर हॉकी खेली। पटियाला में अपने समय के दौरान, कुमार अंडर-16 और अंडर-18 हॉकी नेशनल में SAI की संयुक्त टीम का हिस्सा थे, जहां टीम ने आंध्र प्रदेश के गुंटूर में अंडर -16 नेशनल में रजत पदक जीता था।
वह पेप्सू टीम और पंजाब टीम के लिए 2 राष्ट्रीय पदकों के साथ लौटे और 2007 में बांग्लादेश में आयोजित होने वाले जूनियर एशिया कप के लिए नामित भारतीय जूनियर टीम का भी हिस्सा थे। प्रशासनिक कारणों से टूर्नामेंट रद्द कर दिया गया था। परमजीत कुमार ने दिल्ली में भारतीय जूनियर टीम के साथ नेहरू अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेला
परमजीत बताते हैं कि वे जब पटियाला में SAI केंद्र के लिए चुने गए थे, तो उनके पास हॉकी किट खरीदने के पैसे तक नहीं थे। परमजीत ने हॉस्टल में रहकर भारत के लिए खेलने का सपना देखा। परमजीत जूनियर नेशनल में SAI की संयुक्त टीमों के लिए खेला। जब उसे जूनियर एशिया कप के लिए चुना गया तो उन्हें ब्लेजर मिला। लेकिन 2 दिन बाद टूर्नामेंट रद्द कर दिया गया। टोक्यो ओलिंपिक कांस्य पदक विजेता भारतीय कप्तान मनप्रीत सिंह के अलावा रूपिंदर पाल सिंह, ललित उपाध्याय और कोथाजीत सिंह जैसे अन्य खिलाड़ी SAI टीमों में परमजीत के साथी रह चुके हैं।
2012 में परमजीत के बाएं हाथ में चोट लग गई और वह एक साल से अधिक समय तक खेल से दूर रहे। उन्होंने अपनी चोट के बाद वापसी की और राज्य स्तर और स्थानीय स्तर पर हॉकी के मुकाबले खेले। 2015 के बाद हॉकी पूरी तरह से छूट गई। इसके बाद वह ‘पल्लेदार’ के रूप में काम करना शुरू किया। फिलहाल वह अभी किराए के मकान में पत्नी और बेटे के साथ रहते है।
बेटे को प्लास्टिक की हॉकी और गेंद से देते ट्रेनिंग परमजीत के बेटा अभी 5 वर्ष का है। परमजीत जब शाम के समय घर जाता है तो बेटे विक्रांत को देख उसका चेहरा खिल जाता है। वह बताते हैं कि बेटे विक्रांत को अभी से ही प्लास्टिक की हॉकी से खेलना सिखाता हूं। परमजीत का मानना है कि उसका बेटा एक दिन उसके हालात जरूर बदलेगा।
जानकारी के मुताबिक, मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को जब परमजीत के हालातों के बारे पता चला को उन्होंने उसे 1 फरवरी को चंडीगढ़ बुलाया है। परमजीत को उम्मीद है कि शायद उसे कोई सरकारी नौकरी मिल जाए या बतौर कोच के रूप में नौकरी मिल जाए।