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NRI की कहानी जो इंग्लैंड में 19 साल से सांसद,,,,,दोस्त ने मजाक में वर्क परमिट बनवाया, कैफे से शुरुआत अब 10 इंटरनेशनल होटल के मालिक

जालंधर (ब्यूरो):- ये कहानी है ब्रिटिश सांसद लॉर्ड दिलजीत सिंह राना की। NRI दिलजीत सिंह के ब्रिटेन पहुंचने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। 83 साल के राना बताते हैं कि उनके एक दोस्त ने मजाक में उनका वर्क परमिट बनवा दिया। दुनिया पर शासन करने वाले अंग्रेजों को देखने और समझने के लिए मैं भी इंग्लैंड चला आया। सोचा था कुछ दिनों बाद लौट आऊंगा, लेकिन मन ऐसा लगा कि फिर भारत नहीं लौट सका। 19 साल से यूके के हाउस ऑफ लॉर्ड्स का सदस्य हूं।

इंदौर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन में पहुंचे राना ने भास्कर को बताया- मेरा नाम दिलजीत ही लिखिएगा, दलजीत नहीं। अक्टूबर 1962 तक यूके में कोई इमिग्रेशन पॉलिसी नहीं थी, वहां कोई भी जा सकता था, लेकिन हमारी भारत सरकार पासपोर्ट इशू नहीं करती थी। पासपोर्ट के लिए एप्लाई करो तो वो पूछते थे क्यों जा रहे हो? अब पासपोर्ट हर नागरिक का अधिकार है। उन दिनों पासपोर्ट सरकार के विशेषाधिकार पर निर्भर करता था। सरकार चाहे तो आपको पासपोर्ट दे सकती थी, वरना मना कर देती थी।

उस समय मैं यहां पंजाब सरकार में नौकरी कर रहा था। मैं पुनर्वास विभाग में काम करता था। मेरे एक ट्रैवल एजेंट दोस्त ने मजाक-मजाक में मेरी एप्लिकेशन ब्रिटिश हाई कमीशन दिल्ली को भेज दी। उस समय इकलौता दिल्ली ऑफिस ही था। 2 हफ्ते बाद मुझे वर्क परमिट मिल गया। बिना आवेदन परमिट मिलता नहीं, मैंने आवेदन दिया नहीं तो यह वर्क परमिट मिला कैसे?

फिर सोच में पड़ गया कि जाऊं या न जाऊं। तभी वहां रहने वाले हमारे एक दोस्त क्रिसमस की छुट्‌टी पर आए थे। उन्होंने कहा- अभी आ जाओ, मन न लगे तो इंडिया लौट आना। एक बार क्या गए, फिर लौटना ही नहीं हुआ।

तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने राना को 2004 में हाउस ऑफ लॉर्ड्स का आजीवन सदस्य मनोनीत किया। राना ग्लोबल इंडिया ऑर्गनाइजेशन के प्रेसिडेंट भी हैं। उनका कारोबार उत्तरी आयरलैंड सहित पूरे ब्रिटेन में है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनकी नेटवर्थ 20 हजार करोड़ रुपए की है। राना 1938 में चंडीगढ़ के पास संघोल में जन्मे है।

हमें पढ़ाया जाता था कि यूके ऐसा मुल्क है जो दुनिया पर शासन करता है। इंग्लिश में ही सारी एजुकेशन थी। वर्क परमिट आने से मेरी इच्छा और बढ़ गई और मैं यूके चला गया। वहां जाकर बड़ी मायूसी हुई। वहां काले-गोरों में बड़ा भेदभाव था। वहां मैं सोचता था कि मैं जिस स्टेटस में इंडिया में हूं, वैसी ही जॉब मिल जाए, लेकिन वहां हमारे लोग सिर्फ बस ड्राइवर, कंडक्टर या फैक्ट्री वर्कर ही थे। व्हाइट कॉलर जॉब में कोई नहीं था। फिर मैं उत्तरी आयरलैंड गया। मेरे दोस्त वहां सेटल थे। वहां अलग माहौल था। वहां भारतीय लोग ज्यादा अमीर थे। सभी सेल्फ एम्प्लॉइड थे, वहां सिटी सेंटर में एक कैफे खरीद लिया। वहां से तरक्की करते करते चार-पांच साल में 4 रेस्तरां हो गए।

उत्तरी आयरलैंड के संघर्ष में मेरे होटल बंद हो गए

कारोबार, परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था। 1966 के दौरान उत्तरी आयरलैंड में जातीय संघर्ष शुरू हो गया। हमारे रेस्तरां फिर बंद हो गए, जहां से चले थे, वहीं आकर खड़े हो गए। जगह-जगह हिंसक झड़पें और आगजनी होने लगीं। फिर मैंने दोनों समुदायों के बीच शांति वार्ता की कोशिशें शुरू कीं। उन्हें अपने घर बुलाता, उनकी बातें सुनता। ये सब चलता रहा। फिर स्ट्रगल शुरू किया। फिर से बिजनेस खड़ा किया, अब 10 इंटरनेशनली ब्रांडेड होटल हैं, कई रेस्तरां हैं।

उत्तरी आयरलैंड में यूनाइटेड किंगडम का हिस्सा बने रहने को लेकर कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के बीच 1960 के बाद संघर्ष शुरू हो गया था। इस दौरान वहां दोनों समुदायों के बीच तनाव रहने लगा। आए दिन दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़पें और आगजनी होती थी। ये संघर्ष 1998 तक चला। 1998 में गुड फ्राइडे समझौते के बाद दोनों पक्षों में सुलह हुई। कहा जाता है कि उस सुलह के बीच राना ही सबसे मुख्य किरदार थे। दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए राना ने बताया कि रिश्तों पर जमी बर्फ उनके घर में हुई बैठकों के दौरान ही पिघली। इसके बाद उनके बिजनेस का भी विस्तार हुआ।

राना ब्रिटेन में रहकर भी अपनी जन्मभूमि को नहीं भूले हैं। कारोबार में सफलता पाने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ के पास संघोल में कॉर्डिया एजुकेशन कैंपस बनाया है। इस ट्रस्ट के चेयरमैन भी वे खुद हैं। इस ट्रस्ट के माध्यम से वे शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इस ट्रस्ट के अनेक कॉलेज हैं। वे कहते हैं कि यदि सही एजुकेशन मिल जाए तो फिर युवा अपनी तकदीर खुद बना सकता है। इस कारण से वे एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतर शिक्षा मिल सके।

राना के एजुकेशन ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभाल रहीं उर्मिल वर्मा ने बताया कि लॉर्ड राना ब्रिटेन में समाज सेवा के क्षेत्र में भी बेहद सक्रिय हैं। वे वहां भी शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। खासतौर पर उत्तरी आयरलैंड में। 10 मार्च 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी राना की मुलाकात हुई थी।

राना भ्रष्टाचार से बहुत नफरत करते हैं। उन्होंने ब्रिटिश संसद में दी गई अपनी स्पीच में कहा था कि भ्रष्टाचार सबसे बड़ा दुश्मन है। उन्होंने कहा था कि न सिर्फ ब्रिटेन में बल्कि पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार हटाने की दिशा में काम होना चाहिए। उन्होंने इस दिशा में ब्रिटेन में किए गए काम के लिए सरकार की तारीफ भी की थी।

आज सुबह जल्दी इंदौर एयरपोर्ट पर NRI को घर ले जाने के लिए पहुंच गए थे। जैसे ही टर्मिनल पर उनसे रूबरू हुए तो एक पल के लिए हमारी आंखें डबडबाने लगीं। खुशी तो थी, पर मन में कुछ और ही चल रहा था। मॉरिशस से आए बुजुर्ग पति-पत्नी को हमारे यहां ठहराया गया है। उन्हें देखकर लगा कि जैसे मम्मी-पापा फिर से हमारे घर लौट आए हैं

प्रवासी भारतीय सम्मेलन के लिए ब्रांडिंग से लेकर पब्लिक बॉन्डिंग तक इंदौर तैयार है। अब इंतजार है तो बस मेहमानों का..। मालवा की झलक को दिलों-दिमाग में बैठाने के लिए शहर के चप्पे-चप्पे को ऐसे सजाया जा रहा है कि जहां जाएं रुक जाएं, जिससे मिलें, तो कह उठें कि इंदौर तो फिर से आऊंगा.

इंदौर में होने जा रहे NRI सम्मेलन को लेकर पूरे शहर में जोरदार तैयारी की गई है। कुछ जगह तैयारी जारी है। इसके साथ ही शहर के कुछ जगह ऐसे है जहां सांस्कृतिक कला की छटा भी देखने को मिलेगी। इसे लेकर कलाकार भी अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे है। वहीं कहां पर क्या प्रोग्राम होना है ये भी तय हो चुका है

इंदौर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन के लिए मप्र और PM मोदी की ब्रांडिंग के लिए गजब का एनामॉर्फिक आर्ट तैयार किया गया है। यह आर्ट देखने में रोचक होने के साथ ही इसमें ऐसी चीज छिपी हैं जो इस आर्ट के दोनों तरफ जाने पर ही नजर आती है। इस आर्ट को पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर यहां आने वाले तमाम लोग निहारेंगे

इंदौर में नगर निगम के कर्मचारी पानी देना भूल गए, इसलिए चौराहे की घास सूख गई। NRI सम्मेलन के सिलसिले में जब अफसर यहां से निकले तो सूखी खास देखी। फिर क्या था, इसे खूबसूरत बनाने की जद्दोजहद शुरू हो गई। तय किया कि घास को हरा करने के लिए कृत्रिम डाई का स्प्रे किया जाए। एक हिस्से में स्प्रे किया ही जा रहा था कि मामला सोशल मीडिया पर चल पड़ा। आलोचना होने लगी तो कर्मचारियों ने बीच में ही स्प्रे का काम छोड़ दिया

इंदौर में 11 से 12 जनवरी तक होने वाली 7वीं ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (GIS) में 450 उद्योगपति हिस्सा ले रहे हैं। 65 देशों के प्रतिनिधियों के अलावा 20 देशों के डिप्लोमेट शामिल होंगे। समिट में 55 हजार करोड़ से अधिक के निवेश की उम्मीद जताई जा रही है। 6 कंपनियों ने करीब 10 हजार करोड़ रुपए निवेश करने की सहमति दे दी है।

NRI समिट के तुरंत बाद इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 11-12 जनवरी को होने वाली है। इससे पहले शिवराज सरकार के कार्यकाल में हुईं 6 समिट में 17 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए, जिसमें से जमीन पर डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा के प्रोजेक्ट उतरे हैं। सरकार का दावा है कि पिछले 15 साल में समिट के माध्यम से मध्यप्रदेश में आए निवेश से 2 लाख 37 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है