मान्यवर:-आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने बुधवार को सुबह 10 बजे मौद्रिक नीति की समीक्षा पेश कर दी। सारे आकलनों व टिप्पणियों को दरकिनार करके उन्होंने ब्याज दरों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की है यानी अभी सस्ते कर्ज का जो दौर चल रहा है वह चलता रहेगा।
यह इसलिए संभव हुआ है कि आरबीआइ को अब महंगाई एक बहुत बड़ा खतरा नहीं दिख रहा है। खास तौर पर अनाजों, सब्सजियों व दूसरी जरूरी चीजों की कीमतों को नियंत्रण को लेकर सरकार के स्तर पर जो कदम उठाये गये हैं उससे केंद्रीय बैंक काफी संतुष्ठ नजर आ रहा है। चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई का लक्ष्य 5.3 फीसद रखा गया है जो आरबीआइ के अनुमानों के मुताबिक ही है।
मौद्रिक नीति बनाने वाली समिति (एमपीसी) की पिछले तीन दिनों से चली बैठकों के आधार पर आरबीआइ गवर्नर डॉ. दास ने समीक्षा नीति पेश की। उन्होंने रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, बैंक रेट जैसे वैधानिक दरों में कोई बदलाव नहीं किया। संकेत साफ है कि कोरोना काल के बाद देश की इकोनोमी में सुधार के जो मजबूत लक्षण दिखाई दे रहे हैं, केंद्रीय बैंक उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहता। लेकिन एक अहम वजह यह भी है कि महंगाई को लेकर जो चिंताएं कुछ महीने पहले पैदा हो रही थी वो अब नरम पड़ी हैं।
डॉ. दास ने यह बात स्वयं कही। जिन जींसों की कीमतें अगस्त, 2021 में बढ़ रही थी उनकी कीमतें भी अक्टूबर, 2021 के बाद नरम पड़ने लगी हैं। रबी की बुआई बेहतर होने और पर्याप्त से ज्यादा अनाज भंडार होने की वजह से आगे भी महंगाई की स्थिति बहुत बिगड़ने की स्थिति नहीं है। इस क्रम में आरबीआइ गवर्नर ने सरकार के स्तर पर हो रही कोशिशों की दो बार तारीफ की। खास तौर पर खाद्य तेलों की कीमतों व सब्सजियों की कीमतों को थामने के लिए जो प्रबंधन उपाय किये हैं उसका जिक्र किया।
जिस तरह से एमपीसी के सभी छह सदस्यों ने रेपो रेट को फिलहाल 4 फीसद पर बनाये रखने को लेकर फैसला किया है उससे भी इस बात का पता चलता है कि महंगाई के मोर्चे पर अभी नरमी का ही माहौल रहेगा। आरबीआइ का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा है लेकिन उपभोग की स्थिति अबी बहुत उत्साजनक नहीं है। ब्याज दर बढ़ने से औद्योगिक व उपभोक्ता मांग में कमी आ सकती है जिसका असर देश की विकास दर पर पड़ने का खतरा है। पूरे वर्ष के लिए आर्थिक विकास दर के लक्ष्य को 9.5 फीसद ही रखा गया है।