मान्यवर:-बरेली मंडल की सियासत की बात करें तो यहां भगवा रंग उस दौर में ही चढ़ना शुरू हो गया था, जब भाजपा अपना आकार बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही थी। बरेली शहर की सीट पर तो पार्टी का 1985 से लगातार कब्जा है। वहीं, शाहजहांपुर नगर सीट से मौजूदा वित्त मंत्री सुरेश खन्ना 1989 से लगातार आठवीं बार विधायक हैं। 2017 में तो यहां की फिजाओं में भगवा रंग ऐसा चढ़ा कि मंडल की 25 में से 23 सीटें भाजपा ने जीत लीं। वहीं, दो सीटों पर सपा ने कब्जा जमा लिया। अन्य दलों के हिस्से में कुछ नहीं आया। यह आंकड़े भाजपा को भले ही सुकून दें, लेकिन इस गढ़ को बचाए रखने की बड़ी चुनौती भी उसके सामने है। वहीं, विपक्षी दलों के लिए यहां अवसर भी हैं तो सेंध लगाने की बड़ी चुनौती भी। जाहिर है चुनावी समर में दलों के दमखम, वादों, इरादों का इम्तिहान होगा। नतीजे जो हों, पर एक बात तो साफ है कि यहां का चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा।
अलीगंज के देवेश गुप्ता बताते हैं कि क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरी है। व्यापारी और उद्यमी खुलकर काम कर रहे हैं। इससे रोजगार के अवसर भी लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन 70 साल के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पांच साल नाकाफी होते हैं। हालांकि, आंवला के गांव खैलम के किसान देवेंद्र का कहना है कि छुट्टा पशुओं से खेती करना मुश्किल हो गया है। वहीं, भोजीपुरा के फरीदापुर जागीर के रहने वाले बबलू गंगवार स्पष्ट कर देते हैं कि यह मुद्दा क्यों बड़ा है। वह बताते हैं कि छुट्टा पशुओं से लोग अब खेतों को परती छोड़ने लगे हैं। वह सवाल उठाते हैं, आप ही बताइए ऐसे हालात में किसान का गुजारा कैसे होगा? तो वहीं नवाबगंज के गांव चमरौआ के राजेंद्र सक्सेना अलग तरीके से किसानों की समस्या को रखते हैं। वह कहते हैं, महंगाई से सभी त्रस्त हैं, पर किसानों की हालत सबसे खराब हुई है। चुनाव में महंगाई जरूर मुद्दा बनेगा।
बरेली के मीरगंज के गांव कुरतरा के ब्रजलाल चुनावी चर्चा छिड़ते ही रबर फैक्टरी बंद होने पर सवाल खड़े करने लगते हैं। वह कहते हैं, 90 के दशक में रबर फैक्टरी बंद हुई थी। अगर फैक्टरी की जमीन पर दूसरी फैक्टरी लग जाती तो लोगों को फिर से रोजगार मिल सकता था। लेकिन, इस पर किसी भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। पीलीभीत के मझोला के हरीश शाक्य भी ऐसे ही सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, मझोला चीनी मिल बंद होने से आसपास के किसानों को काफी दिक्कत हो रही है। शाहजहांपुर के गांव हरदुआ के रामभजन लाल कहते हैं कि मिला हुआ रोजगार छिनता है, तो बहुत खराब लगता है। इस चुनाव में यह भी अहम मुद्दा होगा।
अब मंडल के चुनावी माहौल की बात। बरेली शहर सीट भाजपा के लिए सदैव से प्रतिष्ठा का सवाल मानी जाती रही है। 1985 से 2017 तक लगातार यह सीट भाजपा के कब्जे में है। अब डॉ. अरुण कुमार यहां से विधायक हैं।
कैंट सीट के सियासी मिजाज की बात करें तो 1977 से 2007 के बीच के चुनावों में यहां कांग्रेस, जनता दल, सपा, बसपा के अलावा निर्दलीय प्रत्याशी भी विजयी होते रहे। आंवला सीट का मिजाज कैसा रहा है, इस सवाल पर ग्राम गैनी के पंडित राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि यहां अधिकतर भाजपा का कब्जा रहा है। 2017 में चौथी बार विधायक चुने गए धर्मपाल सिंह योगी सरकार के शुरुआती सवा दो साल के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे। तो वहीं, फरीदपुर सीट पर हमेशा बदलाव होता रहा। इस सुरक्षित सीट पर अभी रूहेलखंड विश्वविद्यालय के जाने-माने प्रोफेसर डॉ. श्याम बिहारी सिंह विधायक हैं। फरीदपुर कस्बे के महेश गंगवार कहते हैं कि सुरक्षित सीट होने की वजह से यहां हार-जीत का फैक्टर इस पर निर्भर करता है कि सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाता किस तरफ जाते हैं। अर्पित कुमार बताते हैं, नवाबगंज सीट पर 1977 से जीतने वाली पार्टी चाहे जो भी रही हो, पर जीता कुर्मी बिरादरी का ही प्रत्याशी। यहां से भाजपा के केसर सिंह गंगवार विधायक चुने गए थे। कोरोना से इनकी मौत हो गई।
2008 से पहले मीरगंज विधानसभा क्षेत्र को कावर के नाम से जाना जाता था। 1974 से अस्तित्व में आई कावर सीट पर कभी भी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा। परिसीमन के बाद बनी मीरगंज सीट को 2012 में सुल्तान बेग ने फतह किया। 2017 में यहां से भाजपा के डीसी वर्मा विधायक चुने गए। भोजीपुरा सीट पर भी ऐसे ही हालात रहे। फरीदापुर के ठाकुर अवधेश सिंह बताते हैं, इस सीट पर कुर्मी और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में यहां से भाजपा के बहोरन लाल मौर्य विधायक हैं। बिथरी चैनपुर सीट नए परिसीमन से पहले सन्हा क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर 1991 के बाद सपा, बसपा और भाजपा ही जीतती रही हैं। ग्राम किशनपुर सिंह के रामवीर सिंह बताते हैं, कभी इस सीट पर कांग्रेस के रामेश्वर नाथ चौबे को हराना नामुमकिन माना जाता था। बहरहाल, अब भाजपा के राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल यहां से विधायक हैं। पीलीभीत सदर सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने का रिकॉर्ड कांग्रेस के नाम है। यहां छह बार कांग्रेस तो तीन-तीन बार भाजपा और सपा का कब्जा रहा है। वर्तमान में भाजपा के संजय सिंह गंगवार विधायक हैं। वहीं, पूरनपुर सीट पर चार बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा, दो बार सपा, एक बार बसपा का कब्जा रहा है। बरखेड़ा सीट पर सर्वाधिक बार भाजपा जीती है। यहां भाजपा से किशनलाल राजपूत विधायक हैं। बदायूं शहर विधानसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां लगातार दूसरी बार कोई विधायक नहीं जीता। 2017 में आबिद रजा को हराकर भाजपा से महेश गुप्ता बदायूं शहर विधायक बने। वे वर्तमान में नगर विकास राज्यमंत्री हैं। बदायूं की राजनीति के जानकार देवेश मिश्रा बताते हैं, बिसौली सीट सपा का गढ़ मानी जाती रही है। वहीं, बिल्सी सीट 2012 तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही। बहरहाल इस सीट पर भाजपा के राधाकृष्ण शर्मा का कब्जा है। शेखूपुर सीट पहले उसहैत नाम से जानी जाती थी। वर्ष 2012 में शेखूपुर विधानसभा क्षेत्र बना। नाम परिवर्तन के बाद शेखूपुर के पहले विधायक सपा के आशीष यादव बने। वर्ष 2017 में धर्मेंद्र शाक्य शेखूपुर से जीते। जिले की एकमात्र सीट सहसवान सपा के पास है, जहां से ओमकार सिंह यादव विधायक हैं। वर्ष 2017 में दातागंज से भाजपा के राजीव कुमार सिंह चुनाव जीते। बहेड़ी में 1991 में भाजपा के हरीश चंद्र गंगवार ने सीट पर पहली बार कमल खिलाया। 1993 में सपा के मंजूर अहमद, 1996 में भाजपा के हरीश चंद्र जीते। 2002 के आम चुनाव में सपा फिर जीत गई। तो वहीं, 2007 के चुनाव में भाजपा के छत्रपाल सिंह गंगवार जीते।
2012 में सपा प्रत्याशी अता उर रहमान ने मात्र 18 मतों से भाजपा के छत्रपाल सिंह को मात दी। 2017 में छत्रपाल सिंह यहां से विधायक बने और राज्यमंत्री हैं। पीलीभीत की बीसलपुर सीट दिग्गज नेताओं के लिए पहचानी जाती है। 1991 से अब तक देखें तो भाजपा से रामसरन वर्मा चार बार व बसपा से अनीस अहमद खान उर्फ फूल बाबू तीन बार विधायक चुने गए। यहां के देवेंद्र प्रताप बताते हैं कि बीसलपुर सीट सपा को कभी नहीं मिली। शाहजहांपुर नगर सीट से सुरेश कुमार खन्ना 1989 से लगातार आठवीं बार विधायक हैं। 1977 को छोड़ अधिकांश चुनावों में जिलों की सीटों पर कांग्रेस या निर्दल प्रत्याशियों का ही यहां दबदबा रहा। 1977 में जनता पार्टी की लहर से यह क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। जिले की कटरा सीट 2012 में अस्तित्व में आई थी। पहली बार यहां से सपा से राजेश यादव विधायक बने थे। इसके बाद 2017 में भाजपा से वीर विक्रम सिंह यहां से जीते। शाहजहांपुर जिले की पुवायां सीट पर सबसे ज्यादा आठ बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। यहां 2017 में भाजपा के चेतराम विजयी हुए। वे चार बार कांग्रेस से भी विधायक रहे। ददरौल सीट से भाजपा के मानवेंद्र सिंह विधायक हैं। यहां से सर्वाधिक चार बार कांग्रेस के रामऔतार मिश्रा विधायक रहे। वहीं, जलालाबाद सीट पर सर्वाधिक नौ बार विभिन्न दलों से ठाकुर बिरादरी के विधायक चुने गए। वर्तमान में सपा के शरदवीर सिंह विधायक हैं। तिलहर सीट से 1991 में मुलायम सिंह यादव जीते थे और वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब मुलायम सिंह बदायूं से भी चुनाव लड़े थे। बाद में उन्होंने तिलहर सीट से इस्तीफा दे दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह यादव यहां से पांच बार विधायक रहे।