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महाराष्ट्र में सियासी दंगल में फंसी कांग्रेस-शिवसेना

मान्यवर:-राजनीति में कभी राजा तो कभी उनके किरदार या सहयोगी लड़ते हैं। इस राजनीति का असली दंगल तो महाराष्ट्र में चल रहा है। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के राजनीतिक चक्रव्यूह को तोड़ने की कसरत कर रहे मराठा सरदार शरद पवार के बीच में शिवसेना और कांग्रेस दोनों फंस गई हैं। कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि एनसीपी के नेता और राज्य सरकार के मंत्री नवाब मलिक, पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेड़े के बीच चल रही लड़ाई जितनी दिखाई दे रही है, उससे कहीं ज्यादा गहरी इसकी जड़े हैं। इस पूरे एपीसोड में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की टीम के सदस्य भी मुस्करा कर चुप हो जाते हैं। राजनीति के कई पंडितों का कहना है कि ये एक राजनीतिक दंगल चल रहा है।

महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख इस दंगल की भेंट चढ़ चुके हैं। अनिल देशमुख महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार के वफादार नेताओं में हैं। पवार ने उन्हें आरोपों के मकड़जाल से लेकर जांच एजेंसियों के प्रकोप से बचाने की भरसक कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाए। देशमुख के बाद शरद पवार के भतीजे अजीत पवार पर जांच एजेंसियों ने शिकंजा तेजी से कसना शुरू कर दिया है। आगे कुछ नाम और इस कतार में जुड़ सकते हैं। आने वाली कुछ ऐसी ही विसंगतियों से बचने के लिए महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने मोर्चा खोल दिया है। मलिक इस समय जो भी कुछ कर रहे हैं, उसकी डिजाइन से शरद पवार और उद्धव ठाकरे पूरी तरह वाकिफ हैं। जीतकर निकले तो एनसीपी बब्बर शेर और अगर मुंह की खानी पड़ी तो शरद पवार की मुश्किलें भी बढ़ना तय है। अनिल दुबे महाराष्ट्र और खासकर मुंबई भाजपा की राजनीति में गहरी रुचि लेते हैं। वह साफ कहते हैं कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नवाब मलिक आखिर इतना खुलकर कैसे बोल रहे हैं? क्या एनसीपी प्रमुख शरद पवार या फिर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को कुछ भी पता नहीं है? कुछ तो वजह है और वजह ऐसी भी नहीं है कि आसानी से समझा दी जाए।

 दरअसल पूरी कवायद एनसीपी प्रमुख शरद पवार और भाजपा के शीर्ष नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रही है। अजीत पवार एनसीपी के नेता शरद पवार के भतीजे हैं। भाऊ (शरद पवार) के बाद एनसीपी में सबसे मजबूत चेहरा माने जाते थे। पहले स्थिति बहुत मजबूत थी। लेकिन 2019 में 60 घंटे से ज्यादा समय तक भाजपा के साथ जाने के बाद उनकी स्थिति थोड़ी कमजोर हुई थी। अजीत पवार के भाजपा के साथ जाने की एक वजह को शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकार से जोड़कर देखा जा रहा था। आज भी अजीत पवार के खिलाफ आयकर विभाग की जांच को राजनीति के पंडित उससे जोड़ने से नहीं चूकते। बांद्रा के एक बड़े कांग्रेसी नेता कहते हैं कि इस राजनीतिक खेल में भाजपा का लक्ष्य भी थोड़ा बड़ा है। देखना है कि उसे कितनी कामयाबी मिल पाती है। वह कहते हैं कि शरद पवार को एक प्राइवेट जेट से अमित शाह से मिलन के लिए अहमदाबाद जाना पड़ा था। आखिर कुछ तो वजह रही होगी? वह ये भी कहते हैं कि देवेन्द्र फडणवीस ने हाल के मामलों में देर से प्रतिक्रिया दी है, वहीं उद्धव ठाकरे बहुत संभलकर चल रहे हैं।

 कोई तो वजह है? बांद्रा के कांग्रेसी नेता का कहना है कि 2019 में उद्धव मुख्यमंत्री बने थे। तब से अब तक कई बार एनसीपी के भाजपा के साथ जाने और राज्य में नई सरकार के गठन की  चर्चा और अफवाह दोनों खूब उठी। हालांकि राजनीतिक स्थिति जस की तस है। वह कहते हैं कि सबकुछ समझने वाली बात है। फिर क्या भाजपा और ऐजेंसियों को अजीत पवार के बारे में आज पता चला है? महाराष्ट्र की सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे हैं। लेकिन उद्धव ठाकरे भी मुख्यमंत्री एनसीपी प्रमुख शरद पवार की इच्छा, दांवपेंच तथा राजनीतिक बल से बने हैं। शिवसेना और एनसीपी की सहयोगी कांग्रेस ने महाराष्ट्र में राज्य सरकार की दशा, दिशा तथा स्थायित्व को शरद पवार के सहारे छोड़ दिया है। शिवसेना के नेता संजय राऊत के बयानों से भी साफ लगता है कि राज्य के सभी राजनीतिक दल शरद पवार के साथ ही राजनीतिक संतुलन बनाने में लगे रहते हैं। भाजपा और एनसीपी दोनों के नेता मानते हैं कि यदि शरद पवार अपना समर्थन वापस ले लें तो उद्धव ठाकरे सरकार कुछ घंटे की मेहमान भर रह जाएगी। दूसरी तरफ शरद पवार के भतीजे अजीत पवार एनसीपी से नाता तोड़ लें तो कुछ समय बाद शरद पवार की पार्टी की ताकत दो तिहाई रह जाएगी। राजनीतिक विश्लेषण में यह भी स्पष्ट है कि अनुभवी शरद पवार की राजनीति पर राजनेता मुश्किल से भरोसा करते हैं। न तो वो पहले की तरह स्वस्थ हैं और न ही उन्होंने अपनी तरह का पार्टी में दूसरा नेता पनपने दिया है। भाजपा को भी उसी शरद पवार से दांव खेलना है, जिनकी राजनीतिक पकड़ के आगे उसे 2019 में सरकार बनाने के बाद भी सत्ता छोड़नी पड़ी थी।

भाजपा के नेताओं को पता है कि जब तक यह चलता रहेगा, तब तक शिवसेना और कांग्रेस राजनीति के पैमाने पर भाजपा और एनसीपी के बाद गिनी जाती रहेंगी। शरद पवार भी महाराष्ट्र में घिरे रहेंगे। ऐसा दिखाई भी देता है। शरद पवार जहां केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री के खिलाफ रह-रहकर अपनी नाराजगी दिखाते हैं, वहीं शिवसेना के संजय राऊत भी 2024 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सहयोगी सरकार बनने का दावा कर देते हैं। शिवसेना और एनसीपी के नेताओं का आरोप है कि भाजपा महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ षडयंत्र बुन रही है। इसका उद्देश्य राज्य सरकार को कमजोर करना है। बताते हैं कि भाजपा के केंद्रीय नेता 2019 में स्थायी सरकार न दे पाने का जख्म भुला नहीं पा रहे हैं। जो कुछ चल रहा है, उसमें भाजपा के केन्द्रीय नेताओं की काफी बड़ी भूमिका है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दीपावली के बाद एनसीपी के मंत्री नवाब मलिक को लेकर बड़ा खुलासा करने का दावा किया है। फडणवीस के खुलासा करने से पहले उनकी पत्नी अमृता फडणवीस पर निशाना साधते हुए नवाब मलिक ने राजनीतिक बम फोड़ दिया है।

अमृता फडणवीस  कोई पहली बार निशाने पर नहीं आई हैं। इसके पहले भी उनपर आरोप लगे हैं। इस बार की राजनीतिक लड़ाई गोवा में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की कार्रवाई के बाद शुरू हुई है। इसमें फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन एनसीबी की भेंट चढ़ गए हैं। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के इस छापे और एनसीबी के डायरेक्टर समीर वानखेड़े की इसके पीछे मंशा को लेकर नवाब मलिक ने लगातार सवालों, आरोपों की झड़ी लगा दी है। उनके कुछ आरोप और सवालों ने समीर वानखेड़े को तंग कर रखा है। जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वानखेड़े की सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए उन्हें जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा दे दी है। एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के नेता इसे भाजपा के इशारे पर लिया गया टर्निंग प्वाइंट वाला फैसला बता रहे हैं। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मृत्यु का प्रकरण याद रखना होगा। मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह की तब कुर्सी जाते-जाते बची थी। कुछ महीने बाद दूसरी घटनी हो गई। उद्योगपति मुकेश अंबानी को धमकी देने और मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में पुलिस अधिकारी सचिन वझे पर शिकंजा कस गया। इसी मामले में धन उगाही और इसके तार मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह से होते हुए गृह मंत्री अनिल देशमुख तक जा जुड़े। नतीजा सामने है। गृहमंत्री अनिल देशमुख गिरफ्तार हो चुके हैं। पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह पर भी जांच पड़ताल की तलवार लटकी हुई है। राजनीतिक गलियारे के सूत्र बताते हैं कि ताजा मामला उससे कहीं बड़ा है। यहां भी कोई न कोई नतीजा निकलेगा और इसका असर महाराष्ट्र की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ना तय है।