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बरेली में जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान वर्ष 2010 में , हुए दंगे के सातों आरोपियों को कोर्ट ने किया बरी

मान्यवर:-बरेली में  जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान वर्ष 2010 में हुए दंगे के सभी सातों आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया। यह फैसला अपर सत्र न्यायाधीश हरिप्रसाद की अदालत ने सुनाया। सुनवाई के दौरान चौकी इंचार्ज की ओर से दर्ज कराए इस मुकदमे में पुलिस अपने आरोपों को साबित नहीं कर सकी। दंगा की रिपोर्ट कोतवाली की मठ चौकी के तत्कालीन इंचार्ज आरके शर्मा ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ दर्ज कराई थी।

रिपोर्ट में उन्होंने कहा था दो मार्च, 2010 की शाम करीब पांच बजे जुलूस-ए-मोहम्मदी आजमनगर से मनिहारन चौक की ओर आ रहा था। इसी दौरान हिंदू समुदाय के लोग जुलूस को गुलजार रोड से निकालने की बात कहकर रोकने लगे। इस पर दोनों पक्षों में विवाद हो गया और फिर फायरिंग शुरू हो गई। दुकानों में आगजनी की गई। घरों में घुसकर महिलाओं और बच्चों से अभद्रता की गई, जिससे वहां भय का माहौल पैदा हो गया। मुकदमे में बलवा, तोड़फोड़, आगजनी, जानलेवा हमला और 7-क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट समेत तमाम धाराएं लगाई गईं थीं।

विवेचना के दौरान पुलिस ने मुकदमे में आजमनगर बगिया के राजा, शास्त्री मार्केट के कैफी, आजमनगर के शब्बू कुरैशी, साजिद बेग और आजमनगर में किराये पर रहने वाले धौराटांडा के कमर तथा अब्दुल सलाम को नामजद किया। सभी के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। सभी अब जमानत पर हैं।

मुकदमे की सुनवाई के दौरान पुलिस ने पब्लिक का कोई भी गवाह या आगजनी की कोई वीडियोग्राफी या फोटो पेश नहीं किया। गवाह के रूप में सिर्फ पुलिसकर्मियों के ही बयान कराए गए। वादी आरके शर्मा ने अपने बयानों में कहा कि जुलूस के दौरान मठ इलाके में अक्सर स्थिति तनावपूर्ण होती है, लिहाजा वह आरोपियों को जानते हैं। मगर आरोपियों को जानने के बावजूद मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कराने का कारण वह स्पष्ट नहीं कर सके। इस पर कोर्ट ने सभी आरोपियों को निर्दोष मानते हुए दोषमुक्त कर दिया।