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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद , पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाने की साजिशें तेज

मान्यवर:-अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाने की साजिशें तेज हुई हैं। खासकर सितंबर महीने से ऐसे लोगों पर हमले हो रहे हैं, जिन्होंने आतंकवाद के चरम के दौरान भी घाटी से पलायन नहीं किया था। कश्मीरी पंडितों, सिखों और गैर कश्मीरी हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। सरकार के कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के प्रयासों के बीच पाकिस्तान ने घाटी में दहशत का माहौल पैदा करने की साजिश रची है। नब्बे के दशक में भी इसी तरह हालात पैदा किए गए थे, जिसके बाद कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।  खास यह है कि ज्यादातर हत्याएं श्रीनगर में ही हो रही है, जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय है। दरअसल पाकिस्तान कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के प्रयासों व उनकी संपत्तियों से कब्जे हटाने की कवायद पर बौखला गया है।

उसने फिर 1990 जैसे हालात पैदा करने की साजिश रची है। कश्मीरी पंडितों, सिखों और गैर कश्मीरी लोगों पर हमले और मंदिरों को जलाने की नापाक कोशिश इसी कड़ी का हिस्सा है। इसी के तहत लश्कर-ए-ताइबा को अल्पसंख्यकों पर हमले करने तथा दहशत का माहौल पैदा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पाकिस्तान व उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की चिंता है कि यदि कश्मीरी हिंदुओं को दोबारा से घाटी में बसाने का सरकारी प्रयास सफल हो जाता है तो उसकी तीन दशक की कश्मीर को अस्थिर करने की साजिश बेकार हो जाएगी। अनुच्छेद 370 हटने के बाद सरकार की ओर से पूरी घाटी में शांति स्थापित होने के दावे को खारिज करना भी साजिश का हिस्सा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी सीमापार से आतंकी संगठनों को हवा दी जा रही है। आतंकवाद के दौर में भी घाटी से सिखों ने विस्थापन नहीं किया।

 वे वहीं डटे रहे। सौ से अधिक कश्मीरी पंडित भी श्रीनगर के साथ कश्मीर के विभिन्न इलाकों में रुके रहे। अब फिर कश्मीरियत तथा आपसी सौहार्द व भाईचारे को खत्म करने की कोशिश के तहत हमले किए जा रहे हैं। घाटी में इस साल नौ अल्पसंख्यकों की हत्या कर दी गई। सबसे पहले एक जनवरी को श्रीनगर में स्वर्णकार सतपाल निश्चल को आतंकियों ने निशाना बनाया। इसके बाद डलगेट इलाके में मशहूर कृष्णा ढाबा के मालिक आकाश मेहरा को ढाबा में घुसकर आतंकियों ने 17 फरवरी को गोली मारी थी। दो जून को त्राल में कश्मीरी पंडित भाजपा नेता राकेश पंडिता की आतंकियों ने हत्या कर दी। कुलगाम में सितंबर में बिहार के एक मजदूर को निशाना बनाया गया। 17 सितंबर को आतंकियों ने पुलिस में बतौर फॉलोअर काम कर रहे कु लगाम के कश्मीरी पंडित बंटू शर्मा की हत्या कर दी। यह परिवार पिछले 30 साल से कश्मीर में रह रहा था। पांच अक्तूबर को प्रसिद्ध दवा कारोबारी कश्मीरी पंडित मक्खन लाल बिंदरू की आतंकियों ने श्रीनगर के लाल बाजार इलाके में दुकान में घुसकर हत्या कर दी।

इसी दिन बिहार के भागलपुर निवासी गोलगप्पा विक्रेता वीरेंद्र पासवान भी आतंकियों के गोली के शिकार बने। घटना के एक दिन बाद सात अक्तूबर को श्रीनगर के एक स्कूल में महिला सिख प्रिंसिपल व एक हिंदू शिक्षक की आतंकियों ने हत्या कर दी। बता दें कि तीनों व्यापारी मखन्न लाल बिंदरू, सतपाल निश्चल और आकाश मेहरा ने नब्बे के दशक में आतंकवाद के चरम के बाद भी घाटी नहीं छोड़ी थी। तीनों के प्रतिष्ठान बिंदरू मेडिकेट, निश्चल ज्वैलर्स और कृष्णा ढाबा लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी डॉ. एसपी वैद कहते हैं कि 1990 में भी इसी प्रकार के हालात पैदा करने की कोशिश की गई थी। आईएसआई ने अपनी रणनीति बदली है। इस्लामिक टेरर एजेंडे पर है। तालिबान के कब्जे के बाद फ्रांस की तरह कट्टरता व आतंक पर भारत को भी नीति बनाने की जरूरत है ताकि यह पता चल सके कि शिक्षा की आड़ में लोगों में कट्टरता का बीज तो नहीं बोया जा सकता है। अब आईएसआई व पाकिस्तानी सेना का पूरा फोकस कश्मीर पर होगा। अमेरिका की ओर से अफगानिस्तान में छोड़े गए हथियार आतंकी संगठनों तक पहुंचाने की पाकिस्तान कोशिश करेगा। हालांकि, अब पहले जैसे हालात अंतरराष्ट्रीय सीमा व एलओसी पर नहीं हैं।

 कहा कि यह डर का माहौल पैदा करने की साजिश के साथ ही 370 हटने के बाद भारत सरकार के दावे को झूठलाने की भी कोशिश है। विस्थापितों की वापसी की कोशिशों को झटका देना भी उद्देश्य है। जब आतंकवाद चरम पर था तब भी अनंतनाग के मट्टन में कश्मीरी पंडितों ने घर-बार नहीं छोड़ा था। यहां कश्मीरियत की मिसाल के तहत दोनों समुदाय के लोग मिलकर रह रहे थे। सूर्य मंदिर में कुछ दिनों के लिए पूजा-अर्चना जरूर रुकी थी, लेकिन फिर सब कुछ सामान्य हो गया। कभी भी यहां पंडित समाज को नुकसान नहीं पहुंचाया गया। देशभर में रहने वाले कश्मीरी पंडित मट्टन आकर पूजा अर्चना करते रहे। अब सीधे कुल देवी के मंदिर भार्गशिखा में दो अक्तूबर को तोड़फोड़ व आगजनी से कश्मीरी पंडित समाज को निशाना बनाया गया है। उनमें भय का वातावरण पैदा करने की साजिश की गई है ताकि वे घाटी में लौटने का विचार न बना सकें। मट्टन कश्मीरी पंडितों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। स्थानीय कश्मीरी पंडितों का कहना है कि आपसी भाईचारे को फिर से बर्बाद करने की साजिश की जा रही है। ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।